क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि और क्या है इसका महत्व?
महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव के लिए रखा जाता है. यूं तो हर महीने में शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्गुन मास में आने वाली महाशिवरात्रि का खास महत्व होता है. इस मौके पर श्रद्धालु शिव मंदिरों में रुद्राभिषेक करते हैं. बहुत से लोग शिवरात्रि का व्रत करते हैं और रात्रि जागरण भी करते हैं.
सदगुरु बताते हैं कि इस रात का खास महत्व है और इसका हम बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं. हमारी भारतीय संस्कृति में साल के 365 दिन उत्सव मनाए जाने की परंपरा है. इसे ऐसा कहें कि साल में सभी दिन उत्सव मनाने के लिए कुछ न कुछ बहाना चाहिए. कभी हम ऐतिहासिक घटनाओं को याद करते हैं तो कभी जीत को याद करते हैं. खास मौके जैसे कि कटाई, बुआई का जश्न मनाकर स्वागत करते हैं. हर परिस्थिति के लिए हमारे पास हर तरह का त्योहार है, लेकिन महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2021) इन सबसे अलग है और उसका खास महत्व है.
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
हिंदू धर्म में हर माह मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन फाल्गुन माह में आने वाली महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का खास महत्व होता है. माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. शास्त्रों की माने तों महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. इसके बाद से हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है.
कहा यह भी जाता है कि मां पार्वती सती का पुनर्जन्म है. मां पार्वती शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने शिवजी को अपना बनाने के लिए कई प्रयत्न किए थे, भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए. इसके बाद मां पार्वती ने त्रियुगी नारायण से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन साधना की थी और शिवजी को मोह लिया था और इसी दिन शिवजी और मां पार्वती का विवाह हुआ था.
महाशिवरात्रि का क्या है महत्व?
महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है. यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं. पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं. सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं.
हालांकि, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे. वे एक पर्वत की भांति स्थिर व निश्चल हो गए थे. यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता. उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा. ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए. वही दिन महाशिवरात्रि का था.
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